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सोमवार, 9 दिसंबर 2019

Indian History, History Question Answer, History GK

Indian History, History  Question Answer, History GK


पानीपत की पहली लड़ाई (First Battle of Panipat)
कब: 21 अप्रैल 1526 किसके बीच हुई लड़ाई: बाबर और इब्राहिम लोधी
जगह: पानीपत के पास
21 अप्रैल 1526 को, पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और लोधी साम्राज्य की हमलावर सेनाओं के बीच हुई. इस लड़ाई ने मुगल शासन के उद्भव को देखा और उपमहाद्वीप पर एक मजबूत पैर जमाया. किंवदंतियों के अनुसार, यह शुरुआती लड़ाई थी जिसमें गन पाउडर, फायर आर्म्स और फील्ड आर्टिलरी का उपयोग किया गया था.
पानीपत की पहली लड़ाई के बारे में विस्तार से
बाबर काबुलिस्तान का तिमुरिद शासक था और 1526 में दिल्ली के सुल्तान, इब्राहिम लोधी की विशाल सेना को हराया. लड़ाई वर्तमान हरियाणा राज्य के छोटे से गाँव पानीपत के पास हुई थी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह क्षेत्र 12वीं शताब्दी के बाद से उत्तरी भारत के नियंत्रण के लिए कई निर्णायक लड़ाइयों का स्थल रहा है.
यह अनुमान लगाया जाता है कि बाबर की सेनाओं की संख्या लगभग 15,000 पुरुषों और 20 से 24 टुकड़ियों के क्षेत्र तोपों से लैस थी. बाबर के अनुमान के अनुसार, इब्राहीम लोधी की लगभग 100,000 पुरुष, जिसमें शिविर अनुयायी शामिल थे और कम से कम 1000 युद्ध हाथियों के साथ युद्ध बल लगभग 30,000 से 40,000 पुरुष थे.
लड़ाई में तोपों का उपयोग करने के क्या फायदे हुए?
इब्राहिम लोधी के पास एक विशाल सेना थी, फिर भी वह बाबर से हार गया. ऐसा कहा जा सकता है कि यह तोपखाने, तोप के कारण संभव हुआ. तोप की आवाज इतनी तेज थी कि उसने इब्राहिम लोधी के हाथियों को डरा दिया और लोधी के ही आदमियों को रौंद डाला. यह भी कहा जाता है कि बंदूकों और सभी के अलावा, यह एक बाबर की रणनीति थी जिसने उसे जीत हासिल कराई. आपको बता दें कि बाबर द्वारा शुरू की गई नई युद्ध रणनीति तुलुगमा और अराबा थी. तुलुगमा में पूरी सेना को लेफ्ट, राईट और केंद्र जैसी तीन इकाइयों में विभाजित किया गया. लेफ्ट और राइट डिवीजनों को आगे फॉरवर्ड और रियर डिवीजनों में विभाजित किया गया था. इसके कारण, एक छोटी सेना चारों ओर से दुश्मन को घेरने में सक्षम हो पाई. केंद्र फॉरवर्ड डिवीजन को carts (अराबा) प्रदान किये गए थे, जो दुश्मन का सामना करने वाली पंक्तियों में रखे गए थे और एक दूसरे से रस्सियों से बांधे गए थे. युद्ध में ही, इब्राहिम लोधी मारा गया.

पानीपत की दूसरी लड़ाई (Second Battle of Panipat)
कब: 5 नवंबर, 1556किसके बीच हुई लड़ाई: सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य, (हेमू) और अकबर
जगह: पानीपत
यह कहा जा सकता है कि पानीपत की दूसरी लड़ाई ने भारत में अकबर के शासनकाल की शुरुआत को चिह्नित किया क्योंकि इसी साल अकबर ने सिंहासन को संभालना शुरू किया था.
लड़ाई की पृष्ठभूमि
मुगल शासक हुमायूं की 24 जनवरी, 1556 को दिल्ली में मृत्यु हो गई और उनके बेटे अकबर को सिंहासन सौप दिया गया. उस समय अकबर की आयु 13 वर्ष थी. 14 फरवरी, 1556 को अकबर को राजा के रूप में सिंहासन पर बैठाया गया था. आपको बता दें कि राज्याभिषेक के समय अकबर काबुल, कंधार, दिल्ली और पंजाब के कुछ हिस्सों तक सीमित था. अकबर अपने संरक्षक बैरम खान के साथ काबुल में चुनाव प्रचार कर रहा था.
दिल्ली अकबर / हुमायूँ की लड़ाई में सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य या हेमू से हार गए थे. हेमू 1545 से 1553 तक शेरशाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह के पहले सलाहकार थे और रेवाड़ी (वर्तमान हरियाणा) से थे. 1553 से 1556 तक, हेमू ने प्रधानमंत्री और इस्लाम शाह के प्रमुख के रूप में लगभग 22 युद्ध जीते और सूर शासन के खिलाफ अफगान विद्रोहियों को हराया.
जनवरी 1556 में, जब हुमायूँ की मृत्यु हुई, तो हेमू ने बंगाल के शासक मुहम्मद शाह की हत्या कर दी और विद्रोह को समाप्त किया. अब हेमू ने उत्तरी भारत में लड़ाई जीतने का अभियान शुरू किया. उसने आगरा पर हमला किया और परिणामस्वरूप, अकबर की सेना के कमांडर बिना लड़े वहां से भाग गए. अंत में, हेमू के नियंत्रण में इटावा, कलपी और आगरा प्रांत का क्षेत्र आया.
इसके बाद हेमू दिल्ली चला गया और तुगलकाबाद शहर के बाहर अपनी सेना तैनात की. 6 अक्टूबर, 1556 को, सेना को मुगल प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. अकबर के भयंकर युद्ध के बाद सेनाओं को बाहर कर दिया गया और मुगल सेना के कमांडर तारदी बेग (Tardi Beg) वहां से भाग गया जिससे हेमू ने दिल्ली पर कब्जा किया. क्या आप जानते हैं कि युद्ध में लगभग 3000 मुग़ल सेना मारी गई थी. 7 अक्टूबर 1556 को, हेमू को पुराना किला में ताज पहनाया गया और 350 साल के मुगल प्रभुत्व के बाद उत्तर भारत में हिंदू शासन स्थापित किया गया. उन्हें सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
युद्ध के बारे में विस्तार से
पानीपत की दूसरी लड़ाई के लिए स्थिति बनाई गई और 5 नवंबर 1556 को, अकबर की सेना ने दिल्ली की ओर कूच किया और दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई हुई. कुछ किंवदंतियों के अनुसार, अकबर के संरक्षक और अकबर ने खुद लड़ाई में भाग नहीं लिया था. 13 साल की उम्र में अकबर को युद्ध में भाग लेने की अनुमति नहीं थी और उन्हें लगभग 5000 सेनाओं की विशेष सुरक्षा प्रदान की गई थी. उन्हें बैरम खान द्वारा यह भी निर्देश दिया गया था कि अगर मुगल सेना हार जाती है तो वह काबुल की ओर भाग जाए.
हेमू ने खुद अपनी सेना का नेतृत्व किया और उसके पास लगभग 1500 हाथी थे और आर्टिलरी पार्क का vanguard था. हेमू ने लगभग 30,000 घुड़सवार और अफ़गानों के साथ हमला किया. दूसरी तरफ, मुगल सेना में 10,000 घुड़सवार शामिल थे, जिनमें से 5000 अनुभवी सैनिक थे. हेमू की सेना युद्ध के विजयी पक्ष में थी, लेकिन बडोनी के अनुसार "Suddenly the arrow of death which no shield can ward off struck his (Hemu) squinting eye so that his brain passed cleanout from the cup of his head, and he became unconscious and not to be seen in his area". युद्ध के समय वह अपने क्षेत्र में नहीं दिखा. हेमू को अपने क्षेत्र में नहीं देखते हुए, हेमू की सेना अव्यवस्थित हो गई और आगामी भ्रम में हार गई.
कई घंटों के बाद, हेमू को मृत पाया गया और शाह कुली खान महराम द्वारा पानीपत के गांव सौदापुर में अकबर के तम्बू शिविर में लाया गया. इस युद्ध ने मजबूत मुगल साम्राज्य की स्थापना की और अकबर का शासन शुरू हुआ.

पानीपत की तीसरी लड़ाई (Third Battle of Panipat)
कब: 14 जनवरी, 1761 किसके बीच लड़ाई हुई: मराठा साम्राज्य और अफगानिस्तान के राजा का गठबंधन, दो भारतीय मुस्लिम सहयोगियों के साथ अहमद शाह दुर्रानी अर्थात दोआब के रोहिला अफगान और अवध के नवाज शुजा-उद-दौला के साथ
जगह: पानीपत
इस लड़ाई का अपना ही महत्व है क्योंकि इसने भारत में मराठा के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया था. युद्ध के समय, मराठा पेशवाओं के नेतृत्व में थे और पूरे उत्तर भारत में नियंत्रण स्थापित कर रहे थे और दूसरी तरफ अफगान अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व में थे.
आपको बता दें कि इस लड़ाई को 18वीं शताब्दी में लड़ी गई सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक माना जाता है और एक ही दिन में सबसे ज्यादा जानलेवा हमले भी हुए.
युद्ध के बारे में विस्तार से
14 जनवरी, 1761 को मराठों ने अब्दाली पर हमला किया. युद्ध के दौरान, मल्हार राव होल्कर भाग गया. अब्दाली की सेना इब्राहिम गार्दी की तोपखाने से क्षतिग्रस्त हो गई थी. शाम तक, मराठा बुरी तरह से हार गए, मराठा के अधिकांश सैनिक मारे गए और उनमें से बाकी भाग गए. लेकिन अगले दिन भी लड़ाई जारी रही. मराठों के कई महत्वपूर्ण शासक जिनमें भाऊ, पेशवा के पुत्र, विश्वास राव, जसवंत राव पवार, सिंधिया इत्यादि युद्ध में शामिल थे और मारे गए. मराठों की हार का मुख्य कारण भाऊ की विफलता और एक सेनापति के रूप में भाऊ के खिलाफ अब्दाली की श्रेष्ठता भी थी. साथ ही हार का एक यह भी कारण था कि मराठा के शिविर में, कई महिलाएं और नौकर थे जो मराठा की सेना पर बोझ थे.
मराठा बल की संख्या लगभग 45000 थी और अब्दाली सेना में लगभग 60,000 सैनिक थे. भाऊ के लिए दोआब पर नियंत्रण खोने के बाद, उन्होंने आपूर्ति की कमी महसूस की. उसने पानीपत में अब्दाली के साथ लड़ाई में तीन महीने बर्बाद कर दिए और सबसे बुरा यह था कि पिछले दो महीनों से मराठा सेना आधी भूखी थी. मराठा ने युद्ध में अपनी गुरिल्ला तकनीक का उपयोग नहीं किया और इब्राहिम गार्डी के तहत तोपों पर ही निर्भर रहे. इसमें कोई संदेह नहीं कि अब्दाली के पास मराठों से बेहतर घुड़सवार सेना थी.
दूसरी ओर, भाऊ राजपूतों और जाटों का समर्थन पाने में विफल रहे और युद्ध में हार का एक कारण यह भी माना जाता है. सरदेसाई के अनुसार, मराठों को जीवन का नुकसान हुआ लेकिन मराठों की शक्ति नष्ट नहीं हुई और न ही उनके आदर्श में कोई बदलाव आया.
युद्ध में, मराठों ने रघुनाथ राव जैसे आदिवासी नेताओं को भी खो दिया, जिन्होंने हार का रास्ता भी खोल दिया था. पेशवा लड़ाई में कमजोर हो गए और मराठा साम्राज्य के विघटन का कारण बना.
कुछ समय के लिए, सिंधिया मुगल सम्राट के रक्षक बने रहे, लेकिन मराठा उत्तर में अपनी पकड़ मजबूत करने में असफल रहे. इसलिए, अंग्रेजों को भारत में फ्रांसीसी को खत्म करने और बंगाल में सत्ता पर कब्जा करने का मौका मिल गया. इसलिए, हम कह सकते हैं कि पानीपत की सभी तीन लड़ाइयों का अपना महत्व और कारण है.

Science GK Questions Answers, Biology GK, GK Quiz

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1. शरीर में भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

A. पाचन (Digestion)
B. आत्मसात करना (Assimilation )
C. अंतर्ग्रहण (Ingestion)
D. विसर्जन (Egestion)
Ans: C

2. वह प्रक्रिया जिसमें बड़े, अघुलनशील अणुओं से युक्त भोजन छोटे, पानी में घुलनशील अणुओं में टूटता है, कहलाती है–
A. पाचन (Digestion)
B. अवशोषण (Absorption)
C. अंतर्ग्रहण (Ingestion)
D. आत्मसात (Assimilation)
Ans: A

3. पोषण के उस विधा को क्या कहते हैं जिसमें जीव सरल अकार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन नहीं बना पाते और भोजन के लिए अन्य कार्बनिक जीवों पर निर्भर करते हैं?
A. स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition)
B. परपोषी पोषण (Heterotrophic nutrition)
C. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition)
D. होलोजोइक पोषण (Holozoic nutrition)
Ans: B

4. जब जीव अपना भोजन मृत पौधों, मृत पशुओं और सड़ी हुई रोटियों आदि के सड़ते हुए कार्बनिक पदार्थ से प्राप्त करता है, तो इसे कहते हैं:
A. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition)
B. स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition)
C. होलोजोइक पोषण (Holozoic nutrition)
D. मृतपोषी पोषण (Saprotrophic nutrition)
Ans: D

5. वैसा पोषण जिसमें जीव अपना भोजन अन्य जीवित जीव के शरीर से बिना उसे मारे प्राप्त करता है, कहलाता हैः
A. मृतपोषी पोषण (Saprotrophic nutrition)
B. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition)
C. होलोजोइक पोषण (Holozoic nutrition)
D. स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition)
Ans: B

6. वैसा पोषण जिसमें कोई जीव अन्तर्ग्रहण की प्रक्रिया के द्वारा अपने शरीर में जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थ को ग्रहण करता है, अंतर्ग्रहित भोजन पच जाता है और फिर उस जीव के शरीर की कोशिकाओं में अवशोषित हो जाता है, कहलाता हैः
A. परजीवी पोषण (Parasitic nutrition)
B. स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition)
C. होलोजोइक पोषण (Holozoic nutrition)
D. हेट्रोट्रोफिक न्यूट्रीशन (Heterotrophic nutrition)
Ans: C

7. हरे पौधों द्वारा क्लोरोफिल की उपस्थिति में सूर्य की रौशनी का प्रयोग कर कार्बन डाईऑक्साइड और पानी से खुद के भोजन बनाने की प्रक्रिया को कहते हैं–
A. जैन्थोफिल्स (Xanthophylls)
B. रंध्र (स्टोमाटा) (Stomata)
C. प्रकाशसंश्लेषण (Photosynthesis)
D. क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast)
Ans: C


8. सिर्फ पोधे खाने वाले पशुओं को कहते हैं–
A. शाकाहारी
B. सर्वाहारी
C. मांसाहारी
D. इनमें से कोई नहीं
Ans: A
9. किसी जीव द्वारा पोषक तत्वों का सेवन और उनके उपयोग की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
A. पोषण (Nutrition)
B. प्रकाशसंश्लेषण (Photosynthesis)
C. क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast)
D. पाचन (Digestion)
Ans: A

10. पोषण की वह विधा जिसमें जीव अपने आस– पास मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड और पानी जैसी सरल अकार्बनिक पदार्थ से खुद का भोजन बनाते हैं, को कहा जाता है–
A. परपोषी पोषण (Heterotrophic nutrition)
B. मृतपोषी पोषण (Saprotrophic nutrition)
C. स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition)
D. होलोजोइक पोषण (Holozoic nutrition)
Ans: C

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

Commerce GK In Hindi Questions Answers

Commerce GK In Hindi Questions Answers


1. फर्म के पूँजीगत ढाँचे का विश्लेषण करने का सर्वाधिक सर्वसामान्य उपागम क्या है?
(A) अनुपात विश्लेषण (B) नकद प्रवाह विश्लेषण (C) तुलनात्मक विश्लेषण (D) उत्तोलन विश्लेषण See Answer:

2. निक्षेपागारों और न्यूनतम फड्स का प्रत्यक्ष निरीक्षण कौन करता है?
(A) एन.बी.एफ.सी. (B) आर.बी.आई (C) सेबी (D) उपयुक्त सभी Answer: सेबी

3. दीर्धकालीन ऋण को कौन-सा बाजार कहते है?
(A) मनी मार्केट (B) कैपिटल मार्केट (C) बांड मार्केट (D) इनमें से कोई नहीं Answer: कैपिटल मार्केट

4. प्रबन्ध के सिद्धान्त के जन्मदाता कौन है?
(A) फ्लोमिंग (B) वैवनार्ड (C) एफ. डब्लू. टेलर (D) हेनरी फेयोल Answer: हेनरी फेयोल

5. भारतीय लेखांकन मानक परिषद का स्थापना किस वर्ष में हुई?
(A) 1970 (B) 1972 (C) 1973 (D) 1977 Answer: 1977

6. यदि क्रय प्रतिफल की गणना किए गए विभिन्न भुगतानों के योग द्वारा की जाती है, तो इस विधि को क्या कहते है?
(A) एक मुश्त विधि (B) शुद्ध मूल्य विधि (C) शुद्ध भुगतान विधि (D) अंश मूल्य विधि Answer: शुद्ध मूल्य विधि

7. एक चर जैसे कि क्रिया जिसके द्वारा निर्धारित समय में लागत होती है उसे क्या कहते है?
(A) लागत चालक (B) लागत व्यवहार (C) लागत केन्द्र (D) इनमें से कोई नहीं Answer: लागत चालक

8. भारत सरकार ने संसद में ‘प्रबन्ध में कर्मचारियों की भागीदारी’ का बिल कब प्रेषित किया था?
(A) 1983 (B) 1988 (C) 1990 (D) 1981 Answer: 1990

9. लाभ-हानि खाते में प्रभाहित हृास की राशि प्रति वर्ष किस पद्धति में बदलती रहती है?
(A) स्थायी किश्त पद्धति में (B) वार्षिकी पद्धति में (C) क्रमागत हृास पद्धति में (D) बीमा पॉलिसी पद्धति में Answer:क्रमागत हृास पद्धति में

10. यदि समंकों का वर्गीकरण केवल वर्णनात्मक विशेषाएं जिसे मापा नहीं जा सकता है, के आधार पर किया जाता है, तो उसे क्या कहते है?
(A) भौगोलिक वर्गीकरण (B) कालक्रमात्मक वर्गीकरण (C) गुणात्मक वर्गीकरण (D) मात्रात्मक वर्गीकरण Answer:गुणात्मक वर्गीकरण

11. किसने ‘अपवादों द्वारा प्रबन्ध’ की तकनीक को विकसित किया?
(A) जोसेफ एल. मैसी (B) लेस्टर आर. बिटेल (C) एल. एफ. उर्विक (D) पीटर एफ. ड्रफर Answer: लेस्टर आर. बिटेल

12. नई औद्योगिक नीति की घोषणा किस वर्ष की गई थी?
(A) 1997 (B) 1951 (C) 1991 (D) 1998 Answer: 1991

13. कर्मचारियों की विकास सम्भाव्यता की पहचान किसके जरिए की जाती है?
(A) कार्य संवर्धन (B) कार्य मूल्यांकन (C) कार्य मूल्यांकन केन्द्र (D) पदस्थिति का विवरण Answer: कार्य मूल्यांकन

14. मशीन को खरीद के स्थान से स्थापति करने के स्थान तक लाने के लिए, बीमा खर्च को क्या कहते है?
(A) पूंजी खर्च (B) आगम खर्च (C) स्थगित आगम खर्च (D) उपरोक्त में से कोई नहीं Answer: पूंजी खर्च

15. कौन-सी पद्धति मुद्रा का समय मूल्य पर विचार नहीं करती?
(A) शुद्ध वर्तमान मूल्य (B) आंतरिक प्रत्याय दर (C) औसत प्रत्याय दर (D) लाभ सूचकांक Answer: औसत प्रत्याय दर

16. प्रतियोगी की योजना को मद्देनजर रखते हुए बनाई योजना क्या कहलाती है?
(A) नीति (B) क्रियाविधि (C) व्यूह रचना (D) गुप्त योजना Answer: व्यूह रचना

17. ‘विपणन मिश्रण’ अभिव्यक्ति का सृजन किसने किया?
(A) हेनरी फेयोल (B) जेम्स कूलीटन (C) पीटर ड्रकर (D) अब्राहम मास्लो Answer: जेम्स कूलीटन

18. प्रबन्धन में मानव सम्बन्ध दृष्टिकोण किस विचारक से सम्बन्धित है?
(A) अब्राहम मास्लो (B) पीटर एफ. ड्रकर (C) एल्टोन मायो (D) हैजरबर्ग Answer: पीटर एफ. ड्रकर

19. भारत में व्यापारिक बैंकों को चालू करने के लिए लाइसेंस कौन देता है?
(A) भारत सरकार (B) वित्त मन्त्रालय (C) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (D) बैंकिंग कम्पनी विनियम अधिनियम, 1992 Answer: रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया

20. राज्य अथवा केन्द्र के अधीन प्रतिष्ठान को क्या कहते है?
(A) प्राइवेट/निजी क्षेत्र (B) सार्वजनिक क्षेत्र (C) संयुक्त क्षेत्र (D) सहकारी क्षेत्र Answer: सार्वजनिक क्षेत्र

21. कार्य का नाम, कार्य स्थल, सारांश, कार्यों, उपयोग में लाई गई सामग्रियों, कार्य दशाओं, आदि मदों को अंतर्विष्ट करने वाले विवरण को क्या कहा जाता है?
(A) कार्य विनिर्देंशन (B) कार्य मूल्यांकन (C) कार्य विवरण (D) कार्य विश्लेषण Answer: कार्य विवरण

22. साखपत्र, गारंटी, वायदा संविदा, आदि किसके अन्तर्गत आते हैं?
(A) बैंक की देयताओं (B) बैंक की आस्तियों (C) बैंक की विदेश विनिमय मदों (D) बैंक की तुलनपत्र से हटकर अन्य मदें Answer: बैंक की तुलनपत्र से हटकर अन्य मदें

23. जब किसी व्यवसाय को क्रय किया जाता है तो लिए गए दायित्वों को घटाने के बाद बची कुल सम्पत्तियों के मूल्य से अधिक भुगतान राशि को क्या कहा जाता है?
(A) अंश अधिमूल्य (B) ख्याति (C) विनियोजित पूंजी (D) कार्यशील पूंजी Answer: ख्याति

24. मैट्रिक्स संगठन संरचना निश्चित रूप से किस सिद्धान्त का अतिक्रमण है?
(A) आदेश की एकता (B) स्केलर चेन (C) दिशा की एकता (D) श्रम-विभाजन Answer: आदेश की एकता

25. ‘भविष्य की हानियों के लिए पर्याप्त प्रावधान रखें लेकिन भविष्य के लाभों का पूर्वानुमान न करें।’ यह कथन किस अवधारणा पर आधारित है?
(A) मिलान (B) उद्देश्यात्मक (C) रूढ़िवादिता (D) भौतिकता Answer: रूढ़िवादिता

26. एक फर्म के विघटन होने पर भागीदारों द्वारा लाभ अथवा हानि का बंटवारा किस अनुपात में होता है?
(A) बराबर (B) उनके पूंजी संतुलन के अनुपात में
(C) लाभ बांटने के अनुपात में (D) गार्नर बनाम मरे वाद में बताए गए अनुपात में Answer: गार्नर बनाम मरे वाद में बताए गए अनुपात में

27. ‘किसी फर्म के चालू वर्ष के वित्तीय विवरण पत्रों का उसी फर्म के पिछले वर्षों के निष्पादन से तुलना’ को क्या कहा जाता है?
(A) प्रवृत्ति विश्लेषण (B) क्षैतिक विश्लेषण (C) अन्तरा-फर्म तुलना (D) उपयुक्त सभी Answer: उपयुक्त सभी

28. विस्तृत किस्म की वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय करने वाली फर्में सामान्यतः क्या अपनाती हैं?
(A) लागत धन मूल्यन (B) सीमान्त मूल्यन (C) मंथन मूल्यन (D) उत्पाद श्रेणी मूल्यन Answer: उत्पाद श्रेणी मूल्यन

29. भारत सरकार ने पहली बार किस वर्ष में निर्यात-आयात नीति की घोषणा की?
(A) 1977 (B) 1985 (C) 1988 (D) 1990 Answer: 1985

30. विज्ञापन पर किया गया खर्च जिसका प्रभाव आगामी 3.4 वर्ष तक सम्भावित है, क्या कहलाएगा?
(A) पूंजीगत व्यय (B) आयगत व्यय (C) विलम्बित आयगत व्यय (D) विलम्बित पूंजीगत व्यय Answer: विलम्बित आयगत व्यय

31. किसने औद्योगिक संबंधों की प्रणाली उपागम का प्रतिपादन किया है?
(A) बिट्राइस वेब (B) जॉन डलप (C) एरिक ट्रिस्ट (D) हेनरी फेयोल Answer: जॉन डलप

32. सघन प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण की प्रक्रिया को किस नाम से जाना जाता है?
(A) लाइसेन्सिंग अनुबन्ध (B) प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण (C) ‘टर्नकी’ अनुबन्ध (D) उपर्युक्त में से कोई नहीं Answer:टर्नकी अनुबन्ध

33. शोध, जो क्षेत्र विशेष में ज्ञान की वृद्धि को प्रस्तुत करता है, क्या कहलाता है?
(A) व्यावहारिक शोध (B) गुणात्मक शोध (C) परिमाणात्मक शोध (D) मूल शोध Answer: व्यावहारिक शोध

34. लाभाश पूंजीकरण मॉडल किसके द्वारा विकसित किया गया था?
(A) एजरा सोलोमान (B) मिराॅन जे. गार्डन (C) जेम्स ई. वाल्टर (D) मर्टान एच. मिलर Answer: मिराॅन जे. गार्डन

35. संगठन का परंपरागत सिद्धांत एक संगठन को क्या मानता है?
(A) खुली व्यवस्था (B) बंद व्यवस्था (C) तकनीकी व्यवस्था (D) समष्टी व्यवस्था Answer: बंद व्यवस्था

36. जब उपभोक्ता उन उत्पादकों का पक्ष लेते हैं जिनमें गुणवत्ता, निष्पादन अथवा नवाचारी तत्व होते हैं, तब उसे क्या कहते हैं?
(A) उत्पादन अवधारणा (B) उत्पाद अवधारणा (C) बिक्री अवधारणा (D) विपणन अवधारणा Answer: उत्पाद अवधारणा

37. लागत एवं प्रबन्धन लेखाकरण के ग्राहक कौन है?
(A) प्रबन्धक (B) लेनदार (C) देनदार (D) उपभोक्ता Answer: प्रबन्धक

38. उत्पाद जीवन-चक्र की किस अवस्था में कीमत सम्बन्धी निर्णय सर्वाधिक जटिल होते हैं?
(A) आरम्भिक (B) वृद्धि (C) परिपक्वता (D) गिरावट Answer: परिपक्वता

39. जब एक वस्तु बहुउद्देश्य में प्रयुक्त होती है तो ऐसी मांग को जाना जाता है?
(A) संयुक्त मांग (B) सामूहिक मांग (C) प्रत्यक्ष मांग (D) स्वायत्त मांग Answer: सामूहिक मांग

40. उपभोक्ता व्यवहार सम्बन्धी हावर्ड-सुइथ मॉडल को अन्य किस लोक प्रसिद्ध नाम से जाना जाता है?
(A) मशीन मॉडल (B) मानव मॉडल (C) विपणन मॉडल (D) क्रय मॉडल Answer: मशीन मॉडल

41. किसी कम्पनी की पूंजी का घटाना क्या कहलाता है?
(A) आन्तरिक पुननिर्माण (B) बाह्य पुनर्निर्माण (C) समेकन (D) इनमें से कोई नहीं Answer: आन्तरिक पुननिर्माण

42. वह विपणन कार्य जिसमें लोचपूर्ण मूल्य निर्धारण, संवर्धन तथा अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से मांग के समय प्रतिमान को परिवर्तित किया जाता है, को क्या कहते है?
(A) विविपणन (B) तुल्य विपणन (C) लोचशील विपणन (D) गोरिल्ला विपणन Answer: तुल्य विपणन

43. ऋण वित्तपोषण किसके कारण वित्त का एक सस्ता स्त्रोत है?
(A) धन का समय मूल्य (B) ब्याज दर (C) ब्याज की कर कटौती क्षमता (D) लाभांश उधारदाता को देय नहीं है Answer:ब्याज की कर कटौती क्षमता

44. लेखा वर्ष की समाप्ति से कितनी अवधि के अंदर बोनस का भुगतान अवश्य किया जाना चाहिए, बशर्ते कि बोनस के भुगतान के संबंध में कोई विवाद न हो?
(A) दो माह (B) छह माह (C) आठ माह (D) दस माह Answer: आठ माह

45. किसने मजदूरी अधिशेष मूल्य सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है?
(A) डेविड रिकार्डो (B) कार्ल माक्र्स (C) एडम स्मिथ (D) एफ. ए. वाॅकर Answer: कार्ल माक्र्स

46. एक फर्म जो कि बड़ी संख्या में उत्पाद बना रही है, तो वह कौन-सी मूल्य निर्धारण रणनीति अपनाएगी?
(A) लागतोपरि कीमत-निर्धारण (B) विभेदक कीमत-निर्धारण (C) उत्पादानुसार कीमत-निर्धारण (D) कीमत नेतृत्व Answer: उत्पादानुसार कीमत-निर्धारण

47. प्रकट वरीयता का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया है?
(A) ए. मार्शल (B) पी. एफ. ड्रकर (C) पॉल सैम्युलसन (D) जे. आर. हिक्स Answer: पॉल सैम्युलसन

48. एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार अल्प काल में संतुलन की अवस्था में कब होगा?
(A) MC=AC (B) MC=MR (C) MC=शून्य (D) इनमें से कोई नहीं Answer: MC=MR

49. बजट की वह अवधारणा जिसमें स्तरों को आधार से कम करना पड़ता है, उसे क्या कहते हैं?
(A) लचकदार बजट (B) कुल बजट (C) मास्टर बजट (D) जीरो-बेस बजट (शून्य आधारित बजट) Answer: मास्टर बजट

50. ऋण-पत्रों के भुगतान पर दिया जाने वाला प्रीमियर क्या होता है?
(A) व्यक्तिगत खाता (B) वास्तविक खाता (C) नाममात्र खाता (D) इनमें से कोई नहीं Answer: व्यक्तिगत खाता


भारत का इतिहास पाषाण काल


भारत का इतिहासपाषाण युग- 70000 से 3300 ई.पू
मेहरगढ़ संस्कृति 7000-3300 ई.पू
सिन्धु घाटी सभ्यता- 3300-1700 ई.पू
हड़प्पा संस्कृति 1700-1300 ई.पू
वैदिक काल- 1500–500 ई.पू
प्राचीन भारत - 1200 ई.पू–240 ई.
महाजनपद 700–300 ई.पू
मगध साम्राज्य 545–320 ई.पू
सातवाहन साम्राज्य 230 ई.पू-199 ई.
मौर्य साम्राज्य 321–184 ई.पू
शुंग साम्राज्य 184–123 ई.पू
शक साम्राज्य 123 ई.पू–200 ई.
कुषाण साम्राज्य 60–240 ई.
पूर्व मध्यकालीन भारत- 240 ई.पू– 800 ई.
चोल साम्राज्य 250 ई.पू- 1070 ई.
गुप्त साम्राज्य 280–550 ई.
पाल साम्राज्य 750–1174 ई.
प्रतिहार साम्राज्य 830–963 ई.
राजपूत काल 900–1162 ई.
मध्यकालीन भारत- 500 ई.– 1761 ई.
दिल्ली सल्तनतग़ुलाम वंशख़िलजी वंशतुग़लक़ वंशसैय्यद वंशलोदी वंशमुग़ल साम्राज्य 1206–1526 ई.1206-1290 ई.1290-1320 ई.1320-1414 ई.1414-1451 ई.1451-1526 ई.1526–1857 ई.
दक्कन सल्तनतबहमनी वंशनिज़ामशाही वंश 1490–1596 ई.1358-1518 ई.1490-1565 ई.
दक्षिणी साम्राज्यराष्ट्रकूट वंशहोयसल साम्राज्यककातिया साम्राज्यविजयनगर साम्राज्य 1040-1565 ई.736-973 ई.1040–1346 ई.1083-1323 ई.1326-1565 ई.
आधुनिक भारत- 1762–1947 ई.
मराठा साम्राज्य 1674-1818 ई.
सिख राज्यसंघ 1716-1849 ई.
औपनिवेश काल 1760-1947 ई.


समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल Prehistoric Age
आद्य ऐतिहासिक काल Proto-historic Age
ऐतिहासिक काल Historic Age
प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल
मुख्य लेख : प्रागैतिहासिक काल

इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा। इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है।
आद्य ऐतिहासिक काल

इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं।
ऐतिहासिक काल

मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस Homo sapiens का प्रवेश इस धरती पर आज से क़रीब तीस या चालीस हज़ार वर्ष पहले ही हुआ।
पाषाण काल

यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। -
पुरा पाषाण काल Paleolithic Age
मध्य पाषाण काल Mesolithic Age एवं
नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल Neolithic Age
पुरापाषाण काल

यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर Paleolithic Age(पाषाणकाल) शब्द बना । यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। अभी तक भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं, जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण। प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग 2,50,000 ई.पू. के होंगे। अभी हाल में महाराष्ट्र के 'बोरी' नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर 'मनुष्य' की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है। गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी में मिलते हैं।

सामान्य पत्थरों के कोर तथा फ़्लॅक्स प्रणाली द्वारा बनाये गये औजार मुख्य रूप से मद्रास, वर्तमान चेन्नई में पाये गये हैं। इन दोनों प्रणालियों से निर्मित प्रस्तर के औजार सिंगरौली घाटी, मिर्ज़ापुर एंवं बेलन घाटी, इलाहाबाद में मिले हैं। मध्य प्रदेश के भोपालनगर के पास भीम बेटका में मिली पर्वत गुफायें एवं शैलाश्रृय भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था। वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो Negreto जाति के थे। भारत में पुरापाषाण युग को औजार-प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जा एकता हैं। यह अवस्थाएं हैं-
पुरापाषाण कालीन संस्कृतियांकालअवस्थाएं
1- निम्न पुरापाषाण काल हस्तकुठार Hand-axe और विदारणी Cleaver उद्योग
2- मध्य पुरापाषाण काल

शल्क (फ़्लॅक्स) से बने औज़ार
3- उच्च पुरापाषाण काल

शल्कों और फ़लकों (ब्लेड) पर बने औजार

पूर्व पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं -
पूर्व पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थलस्थलक्षेत्र
1- पहलगाम कश्मीर
2- वेनलघाटी

इलाहाबाद ज़िले में, उत्तर प्रदेश
3- भीमबेटका और आदमगढ़

होशंगाबाद ज़िले में मध्य प्रदेश
4- 16 आर और सिंगी तालाब

नागौर ज़िले में, राजस्थान
5- नेवासा

अहमदनगर ज़िले में महाराष्ट्र
6- हुंसगी

गुलबर्गा ज़िले में कर्नाटक
7- अट्टिरामपक्कम

तमिलनाडु

मध्य पुरापाषाण युग के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं -
भीमबेटका
नेवासा
पुष्कर
ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियाँ
नर्मदा के किनारे स्थित समानापुर
पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गो में विभाजित कर सकते हैं।-
निम्न पुरा पाषाण काल (2,50,000-1,00,000 ई.पू.)
मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000- 40,000 ई.पू.)
उच्च पुरापाषाण काल (40,000- 10,000 ई.पू.)
मध्य पाषाण काल

इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे। पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये। इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेशएवं मैसूर में पाये गये हैं। अभी हाल में ही कुछ अवशेष मिर्जापुर के सिंगरौली, बांदा एवं विन्ध्य क्षेत्र से भी प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि-पंजर के कुछ अवशेष प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश के सराय नाहर राय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे।

जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।[1] यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है। कृषि संबंधी प्रथम साक्ष्य 'साम्भर' राजस्थान में पौधे बोने का है जो ईसा से सात हज़ार वर्ष पुराना है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है।

मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे इस समय मिली समाधियों से स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे। मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे।

बागोर और आदमगढ़ में छठी शताब्दी ई.पू. के आस-पास मध्य पाषाण युगीन लोगों द्वारा भेड़े, बकरियाँ रख जाने का साक्ष्य मिलता है। मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं -
मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थलस्थलक्षेत्र
1- बागोर राजस्थान
2- लंघनाज

गुजरात
3- सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा

उत्तर प्रदेश
4- भीमबेटका, आदमगढ़

मध्य प्रदेश

नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल
मुख्य लेख : नव पाषाण काल

साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है। यूनानी भाषा का Neo शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसलिए इस काल को ‘नवपाषाण काल‘ भी कहा जाता है। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में 'ली मेसुरियर' Le Mesurier ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश कीटौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके बाद 1872 ई. में 'निबलियन फ़्रेज़र' ने कर्नाटक के 'बेलारी' क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं - कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।
ताम्र-पाषाणिक काल

जिस काल में मनुष्य ने पत्थर और तांबे के औज़ारों का साथ-साथ प्रयोग किया, उस काल को 'ताम्र-पाषाणिक काल' कहते हैं। सर्वप्रथम जिस धातु को औज़ारों में प्रयुक्त किया गया वह थी - 'तांबा'। ऐसा माना जाता है कि तांबे का सर्वप्रथम प्रयोग क़रीब 5000 ई.पू. में किया गया। भारत में ताम्र पाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण-पूर्वी भारत में हैं। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में स्थित 'बनास घाटी' के सूखे क्षेत्रों में 'अहाड़ा' एवं 'गिलुंड' नामक स्थानों की खुदाई की गयी। मालवा, एवं 'एरण' स्थानों पर भी खुदाई का कार्य सम्पन्न हुआ जो पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित है। खुदाई में मालवा से प्राप्त होनेवाले 'मृद्भांड' ताम्रपाषाण काल की खुदाई से प्राप्त अन्य मृद्भांडों में सर्वात्तम माने गये हैं।

पश्चिमी महाराष्ट्र में हुए व्यापक उत्खनन क्षेत्रों में अहमदनगर के जोर्वे, नेवासा एवं दायमाबाद, पुणे ज़िले में सोनगांव, इनामगांव आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं। ये सभी क्षेत्र ‘जोर्वे संस्कृति‘ के अन्तर्गत आते हैं। इस संस्कृति का समय 1,400-700 ई.पू. के क़रीब माना जाता है। वैसे तो यह सभ्यता ग्रामीण भी पर कुछ भागों जैसे 'दायमाबाद' एवं 'इनामगांव' में नगरीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी। 'बनासघाटी' में स्थित 'अहाड़' में सपाट कुल्हाड़ियां, चूड़ियां और कई तरह की चादरें प्राप्त हुई हैं। ये सब तांबे से निर्मित उपकरण थे। 'अहाड़' अथवा 'ताम्बवली' के लोग पहले से ही धातुओं के विषय में जानकारी रखते थे। अहाड़ संस्कृति की समय सीमा 2,100 से 1,500 ई.पू. के मध्य मानी जाती है। 'गिलुन्डु', जहां पर एक प्रस्तर फलक उद्योग के अवशेष मिले हैं, 'अहाड़ संस्कृति' का केन्द्र बिन्दु माना जाता है।

इस काल में लोग गेहूँ, धान और दाल की खेती करते थे। पशुओं में ये गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर और ऊँट पालते थे। 'जोर्वे संस्कृति' के अन्तर्गत एक पांच कमरों वाले मकान का अवशेष मिला है। जीवन सामान्यतः ग्रामीण था। चाक निर्मित लाल और काले रंग के 'मृद्‌भांड' पाये गये हैं। कुछ बर्तन, जैसे 'साधारण तश्तरियां' एवं 'साधारण कटोरे' महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 'सूत एवं रेशम के धागे' तथा 'कायथा' में मिले 'मनके के हार' के आधार पर कहा जा एकता है कि 'ताम्र-पाषाण काल' में लोग कताई-बुनाई एवं सोनारी व्यवसाय से परिचित थे। इस समय शवों के संस्कार में घर के भीतर ही शवों का दफ़ना दिया जाता था। दक्षिण भारत में प्राप्त शवों के शीश पूर्व और पैर पश्चिम की ओर एवं महाराष्ट्र में प्राप्त शवों के शीश उत्तर की ओर एवं पैर दक्षिण की ओर मिले हैं। पश्चिमी भारत में लगभग सम्पूर्ण शवाधान एवं पूर्वी भारत में आंशिक शवाधान का प्रचलन था।

इस काल के लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे। राजस्थान और मालवा में प्राप्त मिट्टी निर्मित वृषभ की मूर्ति एवं 'इनाम गांव से प्राप्त 'मातृदेवी की मूर्ति' से लगता है कि लोग वृषभ एवं मातृदेवी की पूजा करते थे। तिथि क्रम के अनुसार भारत में ताम्र-पाषाण बस्तियों की अनेक शाखायें हैं। कुछ तो 'प्राक् हड़प्पायी' हैं, कुछ हड़प्पा संस्कृति के समकालीन हैं, कुछ और हड़प्पोत्तर काल की हैं। 'प्राक् हड़प्पा कालीन संस्कृति' के अन्तर्गत राजस्थान के 'कालीबंगा' एवं हरियाणा के 'बनवाली' स्पष्टतः ताम्र-पाषाणिक अवस्था के हैं। 1,200 ई.पू. के लगभग 'ताम्र-पाषाणिक संस्कृति' का लोप हो गया। केवल ‘जोर्वे संस्कृति‘ ही 700 ई.पू. तक बची रह सकी। सर्वप्रथम चित्रित भांडों के अवशेष 'ताम्र-पाषाणिक काल' में ही मिलते हैं। इसी काल के लोगों ने सर्वप्रथम भारतीय प्राय:द्वीप में बड़े बड़े गांवों की स्थापना की।
ताम्र पाषणिक संस्कृतियांसंस्कृतिकाल
1- अहाड़ संस्कृति लगभग 1700-1500 ई.पू.
2- कायथ संस्कृति

लगभग 2000-1800 ई.पू.
3- मालवा संस्कृति

लगभग 1500-1200 ई.पू.
4- सावलदा संस्कृति .

लगभग 2300-2200 ई.पू
5- जोर्वे संस्कृति

लगभग 1400-700 ई.पू.
6- प्रभास संस्कृति

लगभग 1800-1200 ई.पू.
7- रंगपुर संस्कृति

लगभग 1500-1200 ई.पू.



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