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सोमवार, 14 मार्च 2016

पृथ्वी पर विभिन्न भू-आकृतियों का निर्माण कैसे होता है?




पृथ्वी पर विभिन्न भू-आकृतियों का निर्माण कैसे होता है?



स्थलमंडल अनेक प्लेटों में बंटा हुआ है जिन्हें स्थलमंडलीय प्लेटें कहते हैं। ये प्लेटें गतिशील हैं और पृथ्वी के नीचे स्थित पिघले हुए मैग्मा पर तैर रही हैं। स्थलमंडलीय प्लेटों की यह गतिशीलता पृथ्वी की सतह पर बदलाव का कारण बनती हैं। अंतर्जात बल और बहिर्जात बलों के आधार पर पृथ्वी की गतिशीलता दो प्रकार की होती है। अंतर्जात बल पृथ्वी के अंदर से उत्पन्न होते हैं जबकि बहिर्जात बल पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं। ज्वालामुखी व भूकंप अन्तर्जात बलों से उत्पन्न होते है और अपक्षय व अपरदन बहिर्जात बलों का परिणाम होता है |
ज्वालामुखी
जब पृथ्वी के अंदर पैदा हुआ गर्म मैग्मा धरातलीय छिद्र के सहारे लावा के रूप में बाहर निकलता है तो उसे ज्वालामुखी कहते हैं | ज्वालामुखी का विस्फोट शांत या विस्फोटक दोनों प्रकार का हो सकता है | ज्वालामुखी का प्रमुख कारण धरातल के नीचे स्थित चट्टानों का पिघलकर मैग्मा में बदलना है | ज्वालामुखी का प्रमुख कारण प्लेट गतिशीलता है, क्योंकि ज़्यादातर ज्वालामुखी प्लेट किनारों के सहारे ही पाये जाते हैं |
भूकंप
पृथ्वी के आंतरिक भाग में उत्पन्न होने वाला कंपन जिसे धरातल पर भी महसूस किया जाता है, भूकंप कहलाता है | भूकंप का सबसे प्रमुख कारण स्थलमंडलीय प्लेटों की गतिशीलता की वजह से होने वाला कंपन है। भूकंप के दौरान अनेक तरह की तरंगें पैदा होती हैं, जिन्हें भूकंपीय तरंगें कहते हैं  | भूकंपीय तरंगें तीन प्रकार की होती हैं– पी तरंगें या अनुदैर्ध्य तरंगें, एस तरंगें या अनुप्रस्थ तरंगे, एल तरंगें या धरतलीय तरंगें । पृथ्वी के अंदर जहाँ पर कंपन पैदा होता है, उस स्थान को फोकस कहा जाता है। फोकस के ऊपर स्थित वह धरातलीय बिन्दु जहाँ सर्वप्रथम कंपन को महसूस किया जाता है,उसे अधिकेन्द्र या एपीसेंटर कहा जाता है | कंपन तरंगों के रूप में अधिकेन्द्र से बाहर की तरफ यात्रा करती हैं। आमतौर पर भूकंपीय तरंगों से सबसे अधिक नुकसान अधिकेन्द्र के पास स्थित इलाकों में होता है और जैसे–जैसे अधिकेन्द्र से दूरी बढ़ती जाती है, भूकंप की शक्ति और उससे होने वाला नुकसान कम होता जाता है।
भूआकृति (लैंडस्केपका निर्माण
अपक्षय और अपरदन दो ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिनके माध्यम से भू–आकृति लगातार जीर्ण होती जाती हैं। अपक्षय पृथ्वी की सतह पर मौजूद चट्टानों के टूटने की प्रक्रिया है। अपरदन जल, वायु या हिम जैसे अलग– अलग कारकों के माध्यम से भू–आकृति का कटाव करता है, जिन्हें अपरदन के कारक कहा जाता है। अपरदन से प्राप्त मलबा अपरदन के कारकों द्वारा एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है और अंततः निक्षेपण द्वारा पृथ्वी की सतह पर विभिन्न भू-आकृतियों का निर्माण करता है। भू–आकृति के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों पर नीचे चर्चा की गई है–
  • नदी का कार्य :  अत्यंत कठोर चट्टानों से होकर नदी का जल जब खड़े ढाल से नीचे गिरता है तो झरने का निर्माण होता है । विसर्प (मीऐन्डर) बड़े-बड़े मोड़ होते हैं, जो मैदानी इलाके में प्रवेश करने के दौरान नदी के घुमावदार मार्गों से होकर बहने से बनते हैं। गोखुर झील (ऑक्स–बो लेक) एक प्रकार की कटाव वाली झील होती है, जो विसर्प लूप में कटान की वजह से बनती है। बाढ़ का मैदान, बाढ़ द्वारा लाई गई ऊपजाऊ मृदा और अन्य मलबे के जमा होने से बनता है। तटबंध नदियों के उठे हुये  किनारे होते हैं। वितरिकाएं नदी से अलग हुई ऐसी धाराएं होती हैं, जो नदी के पानी को अलग–अलग शाखाओं में बाँट देती हैं। डेल्टा का निर्माण नदी के मुहाने पर नदी द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से होता है।
  • सागरीय तरंगों का कार्य : तटीय भू–आकृतियां सागरीय तरंगों से हुए अपरदन और निक्षेपण से बनती हैं। समुद्र की गुफाएं खोखली गुफाओं जैसी होती हैं, जो सागरीय तरंगों के चट्टानों पर लगातार टकराने से बनती हैं। जब अपरदन द्वारा गुफा के दूसरी तरफ तक कटाव हो जाता है, तो गुफा मेहराब में बादल जाती है। समुद्र की मेहराबों की छत जब कटाव से टूट जाती हैं और सिर्फ दीवारें बचती हैं। समुद्री जल में स्थित ये खड़ी दीवार जैसी आकृतियां ‘स्टैक्स’ कहलाती हैं। खड़े चट्टानी तट को, जो सागरीय जल के सामने लगभग लम्बवत रूप में स्थित होता है, सागरीय कगार (सी क्लिफ) कहते हैं। किनारों पर सागरीय तरंगों द्वारा जमा किए जाने वाले अवसाद से पुलिन तटों का निर्माण होता है।
  • हिमानी का कार्य : हिमानी बर्फ की नदी होती है। हिमानी भी अपने नीचे व किनारे पर  स्थित ठोस चट्टान अपक्षय और अपरदन करती हैं। हिमानी द्वारा लाया जाने वाला मलबा, जिसमें बड़ी और छोटी चट्टानें, रेत और गाद आदि शामिल होती है,निक्षेपित होकर हिमोढ़ का निर्माण करते हैं।
  • वायु का कार्य : वायु रेगिस्तान में अपक्षय और अपरदन का सक्रिए कारक होता है। रेगिस्तानों में मशरुम के आकार वाली मशरूम चट्टानें पाई जाती हैं। रेगिस्तान में बहने वाली हवाओं द्वारा लाये गए रेत के जमाव से रेत के टीले बनते हैं। जब रेत के कण अपने स्रोत क्षेत्र से बहुत दूर जाकर निक्षेपित होते हैं, तो लोयस का निर्माण करते हैं।
















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