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बुधवार, 6 अप्रैल 2016

Hindi literature






हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रतासंग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभहोने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढाऔर जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना केसाथ–साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली. पद्य के साथ–साथ गद्य का भी विकास हुआ औरछापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नई क्रांति हुई.


आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा. पूरे देश में औरहर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचनाकरके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया. हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों मेंविभक्त किया जा सकता है.


1 भारतेंदु पूर्व युग 1800 ईस्वी से 1850 ईस्वी तक


2 भारतेंदु युग 1850 ईस्वी से 1900 ईस्वी तक


3 द्विवेदी युग 1900 ईस्वी से 1920 ईस्वी तक


4 रामचंद्र शुक्ल व प्रेमचंद युग 1920 ईस्वी से 1936 ईस्वी तक


5 अद्यतन युग 1936 ईस्वी से आज तक





भारतेंदु पूर्व युग


हिन्दी में गद्य का विकास 19वीं शताब्दी के आसपास हुआ. इस विकास में कलकत्ता के फोर्टविलियम कॉलेज की महत्वपूर्ण भूमिका रही. इस कॉलेज के दो विद्वानों लल्लूलाल जी तथा सदलमिश्र ने गिलक्राइस्ट के निर्देशन में क्रमशः प्रेमसागर तथा नासिकेतोपाख्यान नामक पुस्तकें तैयारकीं. इसी समय सदासुखलाल ने सुखसागर तथा मुंशी इंशा अल्ला खां ने ‘रानी केतकी की कहानी‘ कीरचना की इन सभी ग्रंथों की भाषा में उस समय प्रयोग में आनेवाली खडी बोली को स्थान मिला. येसभी कृतियाँ सन् 1803 में रची गयी थीं.


आधुनिक खडी बोली के गद्य के विकास में विभिन्न धर्मों की परिचयात्मक पुस्तकों का खूब सहयोगरहा जिसमें ईसाई धर्म का भी योगदान रहा. बंगाल के राजा राम मोहन राय ने 1815 ईस्वी में वेदांतसूत्र का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया. इसके बाद उन्होंने 1829 में बंगदूत नामक पत्र हिन्दी मेंनिकाला. इसके पहले ही 1826 में कानपुर के पं जुगल किशोर ने हिन्दी का पहला समाचार पत्रउदंतमार्तंड कलकत्ता से निकाला. इसी समय गुजराती भाषी आर्य समाज संस्थापक स्वामी दयानंदसरस्वती ने अपना प्रसिध्द ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश हिन्दी में लिखा.


भारतेंदु युग


भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885) को हिन्दी–साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है.उन्होंने कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन और हरिश्चंद्र पत्रिका निकाली. साथ ही अनेक नाटकों कीरचना की. उनके प्रसिध्द नाटक हैं– चंद्रावली, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी. ये नाटक रंगमंच पर भीबहुत लोकप्रिय हुए. इस काल में निबंध नाटक उपन्यास तथा कहानियों की रचना हुई. इस काल केलेखकों में बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, राधा चरण गोस्वामी, उपाध्याय बदरीनाथ चौधरीप्रेमघन, लाला श्रीनिवास दास, बाबू देवकी नंदन खत्री, और किशोरी लाल गोस्वामी आदि उल्लेखनीयहैं. इनमें से अधिकांश लेखक होने के साथ साथ पत्रकार भी थे. श्रीनिवासदास के उपन्यास परीक्षागुरूको हिन्दी का पहला उपन्यास कहा जाता है. कुछ विद्वान श्रद्धाराम फुल्लौरी के उपन्यास भाग्यवतीको हिन्दी का पहला उपन्यास मानते हैं. बाबू देवकीनंदन खत्री का चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संततिआदि इस युग के प्रमुख उपन्यास हैं. ये उपन्यास इतने लोकप्रिय हुए कि इनको पढने के लिये बहुतसे अहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी. इस युग की कहानियों में शिवप्रसाद सितारे हिन्द की राजा भोज कासपना महत्त्वपूर्ण है.


द्विवेदी युग


आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस युग का नाम द्विवेदी युग रखा गया. सन 1903ईस्वी में द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका के संपादन का भार संभाला. उन्होंने खडी बोली गद्य केस्वरूप को स्थिर किया और पत्रिका के माध्यम से रचनाकारों के एक बडे समुदाय को खडी बोली मेंलिखने को प्रेरित किया. इस काल में निबंध, उपन्यास, कहानी, नाटक एवं समालोचना का अच्छाविकास हुआ. इस युग के निबंधकारों में पं महावीर प्रसाद द्विवेदी, माधव प्रसाद मिश्र, श्याम सुंदरदास, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बाल मुकंद गुप्त और अध्यापक पूर्ण सिंह आदि उल्लेखनीय हैं. इनकेनिबंध गंभीर, ललित एवं विचारात्मक हैं. किशोरीलाल गोस्वामी और बाबू गोपाल राम गहमरी केउपन्यासों में मनोरंजन और घटनाओं की रोचकता है.


हिंदी कहानी का वास्तविक विकास द्विवेदी युग से ही शुरू हुआ. किशोरी लाल गोस्वामी की इंदुमतीकहानी को कुछ विद्वान हिंदी की पहली कहानी मानते हैं. अन्य कहानियों में बंग महिला की दुलाईवाली, शुक्ल जी की ग्यारह वर्ष का समय, प्रसाद जी की ग्राम और चंद्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहाथा महत्त्वपूर्ण हैं. समालोचना के क्षेत्र में पद्मसिंह शर्मा उल्लेखनीय हैं. हरिऔध, शिवनंदन सहायतथा राय देवीप्रसाद पूर्ण द्वारा कुछ नाटक लिखे गए.


रामचंद्र शुक्ल एवं प्रेमचंद युग


गद्य के विकास में इस युग का विशेष महत्त्व है.पं रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) ने निबंध, हिन्दीसाहित्य के इतिहास और समालोचना के क्षेत्र में गंभीर लेखन किया. उन्होंने मनोविकारों पर हिंदी मेंपहली बार निबंध लेखन किया. साहित्य समीक्षा से संबंधित निबंधों की भी रचना की. उनके निबंधों मेंभाव और विचार अर्थात् बुद्धि और हृदय दोनों का समन्वय है. हिंदी शब्दसागर की भूमिका के रूप मेंलिखा गया उनका इतिहास आज भी अपनी सार्थकता बनाए हुए है. जायसी, तुलसीदास और सूरदासपर लिखी गयी उनकी आलोचनाओं ने भावी आलोचकों का मार्गदर्शन किया. इस काल के अन्यनिबंधकारों में जैनेन्द्र कुमार जैन, सियारामशरण गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और जयशंकरप्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं.


कथा साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद ने क्रांति ही कर डाली. अब कथा साहित्य केवल मनोरंजन, कौतूहलऔर नीति का विषय ही नहीं रहा बल्कि सीधे जीवन की समस्याओं से जुड ग़या.उन्होंने सेवा सदन,रंगभूमि, निर्मला, गबन एवं गोदान आदि उपन्यासों की रचना की. उनकी तीन सौ से अधिककहानियां मानसरोवर के आठ भागों में तथा गुप्तधन के दो भागों में संग्रहित हैं. पूस की रात, कफन,शतरंज के खिलाडी, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा तथा ईदगाह आदि उनकी कहानियां खूबलोकप्रिय हुयीं. इसकाल के अन्य कथाकारों में विश्वंभर शर्मा कौशिक, वृंदावनलाल वर्मा, राहुलसांकृत्यायन, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, उपेन्द्रनाथ अश्क, जयशंकर प्रसाद, भगवतीचरण वर्मा आदि केनाम उल्लेखनीय हैं.


नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का विशेष स्थान है. इनके चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसेऐतिहासिक नाटकों में इतिहास और कल्पना तथा भारतीय और पाश्चात्य नाटय पद्यतियों कासमन्वय हुआ है. लक्ष्मीनारायण मिश्र, हरिकृष्ण प्रेमी, जगदीशचंद्र माथुर आदि इस काल केउल्लेखनीय नाटककार हैं.


अद्यतन काल


इस काल में गद्य का चहुंमुखी विकास हुआ. पं हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेंद्र कुमार, अज्ञेय, यशपाल,नंददुलारे वाजपेयी, डॉ. नगेंद्र, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा डा. रामविलास शर्मा आदि ने विचारात्मकनिबंधों की रचना की है. हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर,विवेकी राय, और कुबेरनाथ राय ने ललित निबंधों की रचना की है. हरिशंकर परसांई, शरद जोशी,श्रीलाल शुक्ल, रवींन्द्रनाथ त्यागी, तथा के पी सक्सेना, के व्यंग्य आज के जीवन की विद्रूपताओं केउद्धाटन में सफल हुए हैं. जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, इलाचंद्र जोशी, अमृतलाल नागर, रांगेय राघव औरभगवती चरण वर्मा ने उल्लेखनीय उपन्यासों की रचना की. नागार्जुन, फणीश्वर नाथ रेणु, अमृतराय,तथा राही मासूम रजा ने लोकप्रिय आंचलिक उपन्यास लिखे हैं. मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, मन्नूभंडारी, कमलेश्वर, भीष्म साहनी, भैरव प्रसाद गुप्त, आदि ने आधुनिक भाव बोध वाले अनेकउपन्यासों और कहानियों की रचना की है. अमरकांत, निर्मल वर्मा तथा ज्ञानरंजन आदि भी नए कथासाहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं.


प्रसादोत्तर नाटकों के क्षेत्र में लक्ष्मीनारायण लाल, लक्ष्मीकांत वर्मा, मोहन राकेश तथा कमलेश्वर केनाम उल्लेखनीय हैं. कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा बनारसीदास चतुर्वेदी आदि नेसंस्मरण रेखाचित्र व जीवनी आदि की रचना की है. शुक्ल जी के बाद पं हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंददुलारे वाजपेयी, नगेन्द्र, रामविलास शर्मा तथा नामवर सिंह ने हिंदी समालोचना को समृध्द किया.आज गद्य की अनेक नयी विधाओं जैसे यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज, रेडियो रूपक, आलेख आदि मेंविपुल साहित्य की रचना हो रही है और गद्य की विधाएं एक दूसरे से मिल रही हैं.
































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